युमथांग
वैली से चाय नास्ता करने के बाद हमलोग जीरो प्वाइंट की ओर रवाना हुए। मौसम हमारा
साथ दे रहा था। वरना एक दिन पहले आए सैलानी युमथांग वैली के पहले से ही लौटा दिए
गए थे। खराब मौसम के कारण। सड़क पर बर्फ की मोटी चादर बिछी है। इसको काटते हुए
हमारी बुलेरो आगे बढ़ रही है। रास्ते में फौजी भाई मिले जो हमे आगे जाने के इशारा
करते हैं। तभी आगे हम देखते हैं कि एक जीप बर्फ में फंस गई है। हम सबने मिलकर
धक्का देकर उसे बर्फ से निकाल दिया। हम धीरे धीरे ऊंचाई पर चढ़ रहे हैं। युमथांग
घाटी 12,000 फीट की ऊंचाई पर है। आगे एक शिव मंदिर आया जो 12800 फीट की ऊंचाई पर
है। मंदिर के आसपास सेना का अस्थायी शिविर बना हुआ है। शिविर के सारे कैंप भवन
बर्फ से ढके हैं। हम जब ऊंचाई पर चढ़ते जा रहे हैं तो नीचे ये बर्फ से ढका शिविर
अत्यंत सुंदर दिखाई दे रहा है।
अब हम 13700 फीट की ऊंचाई पर आ गए हैं। तीखे मोड़ हैं। सेना ने इस स्थल का नाम दिया है जलेबी प्वाइंट। शायद जलेबी जैसे तीखे मोड़ के कारण ही ऐसा नाम दिया गया है। तो हम 14 हजार फीट से ज्यादा ऊंचाई पर पहुंच गए हैं। इस तरह बर्फ का वादियों में सैर करना हमारे और अनादि के लिए पहला अनुभव है। पर हमें यहां कुछ खास ठंड नहीं लग रही है।
अब हम 13700 फीट की ऊंचाई पर आ गए हैं। तीखे मोड़ हैं। सेना ने इस स्थल का नाम दिया है जलेबी प्वाइंट। शायद जलेबी जैसे तीखे मोड़ के कारण ही ऐसा नाम दिया गया है। तो हम 14 हजार फीट से ज्यादा ऊंचाई पर पहुंच गए हैं। इस तरह बर्फ का वादियों में सैर करना हमारे और अनादि के लिए पहला अनुभव है। पर हमें यहां कुछ खास ठंड नहीं लग रही है।
थोड़ी
और ऊंचाई जाने पर जीरो प्वाइंट से थोडा पहले हमारी गाड़ी भी बर्फ में फंसने लगी।
सड़क पर बर्फ की परत काफी मोटी हो गई थी। काफी कोशिश के बाद ड्राईवर महोदय ने कहा
कि अब इससे आगे गाड़ी नहीं जा सकती। हमलोग अब नीचे उतर गए। उसके बाद पैदल थोड़ी
दूर चले। हमने घुटने तक लंबे प्लास्टिक के बूट किराए पर ले लिए थे। अब इसकी अहमियत समझ में आने लगी। थोड़ी
दूर जाने पर सड़क किनारे एक फ्लैट टेबल लैंड दिखा। हम यहां पर उतर कर बर्फ पर
चहलकदमी करने लगे। बगली में गहरी नदी की पतली सी धारा नजर आ रही थी। कुछ और वाहनों
से भी लोग आ गए थे। उसके बाद शुरू हुआ बर्फ के गोले उड़ाने का खेल।
कुछ लोग बर्फ पर लेट गए तो कुछ लोग बर्फ के गोलों को फुटबाल बनाकर एक दूसरे पर फेंकने लगे। सभी अनजान लोग दोस्त बन गए। और ये खेल कुछ घंटो तक चलता रहा। सबको खूब मजा आया। कुछ लोग स्लो मोशन में वीडियो बनाने में व्यस्त हो गए। सभी अपने अपने तरीके से इस यादगार पल को जी लेना चाहते थे। अपनी यादों में समेट लेना चाहते थे। बर्फ की इतनी हसीन वादियां कई लोग शायद पहली बार देख रहे थे।
कुछ लोग बर्फ पर लेट गए तो कुछ लोग बर्फ के गोलों को फुटबाल बनाकर एक दूसरे पर फेंकने लगे। सभी अनजान लोग दोस्त बन गए। और ये खेल कुछ घंटो तक चलता रहा। सबको खूब मजा आया। कुछ लोग स्लो मोशन में वीडियो बनाने में व्यस्त हो गए। सभी अपने अपने तरीके से इस यादगार पल को जी लेना चाहते थे। अपनी यादों में समेट लेना चाहते थे। बर्फ की इतनी हसीन वादियां कई लोग शायद पहली बार देख रहे थे।
कुछ
चाय काफी वाले भी तब तक परिदृश्य का हिस्सा बन चुके थे। कुछ चना मसाला बेचने वाले
भी। तो उनकी दुकानदारी भी चलने लगी। जब बर्फ से खेलकर जी भर गया तो वापसी की बात
सोची गई। तकरीबन 14000 फीट से वापसी। वापस आने पर युमथांग वैली में एक बार फिर
तस्वीरें। उसी भूटिया महिला की दुकान पर। महिला बोल पड़ी- समधी जी और दामाद जी वापस
आ गए। हमने वहां एक बार फिर चाय पी, मोमोज खाए। अब वापसी। पर जीरो प्वाइंट और
युमथांग वैली का ये सफर और यहां गुजारे कुछ घंटे अनमोल बन गए। स्मृतियों के आंगन
का अमिट हिस्सा। तो अब चलें।
हम
नहीं जा सके कटाव - युमथांग से दोपहर में वापस लाचुंग उसी
हिडेन वैली गेस्ट हाउस में। हमने अभी कमरा खाली नहीं किया है। हमारा दोपहर का लंच
यहीं पर है। वापसी में लंच तैयार है। दोपहर का खाना रात के खाने से बेहतर है। फिर
वही चावल, दाल, सब्जी, भूजिया, सलाद और नॉन वेज खाने वालों के लिए अंडा। हमने
फटाफट खाना खा लिया। क्योंकि हमें बुलेरो वाले ड्राईवर कटाव भी दिखाने का वादा कर
रहे हैं।
खाने के बाद हमलोग कटाव की तरफ चल पड़े। यह युमथांग वैली के दूसरी तरफ है। लाचुंग से 28 किलोमीटर चीन (तिब्बत) बार्डर की तरफ। कोई 12 किलोमीटर से ज्यादा का सफर किया होगा कि सामने सिक्किम पुलिस की पूरी टीम मिली। वह रास्ते में बिजली की तार चोरी हो गई थी, उसकी जांच करने पहुंची थी। पर पुलिस अधिकारियों ने ड्राईवर से हमारे परमिट की जांच की। पुलिस वालों का कहना था कि आपके परमिट में सिर्फ लाचुंग वैली लिखा है, कटाव का जिक्र नहीं है इसलिए आपको यहीं से वापस जाना होगा। पुलिस ने हमसे पूछा किसी के पास ड्रोन कैमरा, सेटेलाइट फोन आदि तो नहीं है। हमने कहा नहीं। पुलिस का कनहा था कि कुछ सैलानी इस क्षेत्र में ड्रोन कैमरा और सेटेलाइट फोन के साथ पकड़े जा चुके हैं। इसके साथ ही उन्होने हमारे ड्राईवर महोदय का चालान भी कर दिया। अब हमारी कटाव के आधे रास्ते से वापसी हो गई। लाचुंग वैली के थाने में जाकर ड्राईवर महोदय को रिपोर्ट भी करनी पड़ी।
खाने के बाद हमलोग कटाव की तरफ चल पड़े। यह युमथांग वैली के दूसरी तरफ है। लाचुंग से 28 किलोमीटर चीन (तिब्बत) बार्डर की तरफ। कोई 12 किलोमीटर से ज्यादा का सफर किया होगा कि सामने सिक्किम पुलिस की पूरी टीम मिली। वह रास्ते में बिजली की तार चोरी हो गई थी, उसकी जांच करने पहुंची थी। पर पुलिस अधिकारियों ने ड्राईवर से हमारे परमिट की जांच की। पुलिस वालों का कहना था कि आपके परमिट में सिर्फ लाचुंग वैली लिखा है, कटाव का जिक्र नहीं है इसलिए आपको यहीं से वापस जाना होगा। पुलिस ने हमसे पूछा किसी के पास ड्रोन कैमरा, सेटेलाइट फोन आदि तो नहीं है। हमने कहा नहीं। पुलिस का कनहा था कि कुछ सैलानी इस क्षेत्र में ड्रोन कैमरा और सेटेलाइट फोन के साथ पकड़े जा चुके हैं। इसके साथ ही उन्होने हमारे ड्राईवर महोदय का चालान भी कर दिया। अब हमारी कटाव के आधे रास्ते से वापसी हो गई। लाचुंग वैली के थाने में जाकर ड्राईवर महोदय को रिपोर्ट भी करनी पड़ी।
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विद्युत प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com
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