किसी जमाने में चंपारण को मिनी
चंबल कहा जाता था। पर अब हालात बदल गए हैं। लौरिया नंदनगढ़ से आटो रिक्शा में
बैठता हूं नरकटियागंज के लिए। सड़क अच्छी बन गई है। दोनों तरफ हरे भरे खेत हैं।
चंपारण धान का बड़ा उत्पादक क्षेत्र है। गन्ने का उत्पादन भी बड़े पैमाने पर होता
है। चंपारण में कई चीनी मिलें हैं। यहां को भूख से नहीं मरता। जून के महीने में आम
का मौसम है। पेड़ों पर जर्दा आम पककर झूम रहे हैं। बाजार में बेचने के लिए आम
तोड़े जा रहे हैं। आटोरिक्शा हमें
नरकटियागंज के हरदिया चौक पर छोड़ देता है। मैं रेलवे स्टेशन को पार करके पुरानी
बाजार होते हुए जय प्रकाशनारायण की प्रतिमा वाले चौक तक पहुंचता हूं। बाजार में आम
खूब सस्ते बिक रहे हैं। 30 रुपये किलो।
सब्जियां तो और भी सस्ती हैं। करेला, नेनुआ और कुनरी सब 10 रुपये किलो। पर
नरकटियागंज में जमीन काफी महंगी है। 40 लाख रुपये प्रति कट्टा। यानी दिल्ली के
बाहरी इलाके के बराबर। चंपारण से बड़ी संख्या में लोग अरब देशों में नौकरी करने गए
हैं इसलिए पैसा खूब आ रहा है। ब्लॉक और
जिले में पदस्थापित होने वाले अधिकारी चंपारण से तबादला नहीं चाहते। क्योंकि यहां
रुतबा और पैसा दोनों है। सौ साल पहले होने वाली नील की खेती के बाद हालात बदल गए
हैं। रेल नेटवर्क और सड़क नेटवर्क में भी सुधार हुआ है। एक और अच्छी चीज दिखाई
देती है बिहार पर्यटन की ओर से सभी प्रमुख चौक चौराहों पर आसपास के स्थलों की
जानकारी देते हुए बोर्ड लगाए गए हैं।
बेतिया कभी बेतिया राज हुआ करता
है। बेतिया की सड़कों पर फिल्म अभिनेत्री हेलन का बचपन गुजरा है। यहां जार्ज आरवेल
की स्मृतियां हैं। चनपटिया से पार करके कुमार बाग पहुंचता हूं। कई उद्योग लगे
दिखाई देते हैं। बेतिया शहर के चारों तरफ कालोनाइजनर नई नई कालोनियां बनाने में
लगे हैं। शहर में तेजी से फैलाव हो रहा है। कुमार बाग तक कालोनियां बन रही हैं।
बेतिया शहर में बड़े बड़े शोरूम दिखाई देते हैं।
प्रजापति, छतौनी, सुप्रिया रोड में बदलाव की बयार दिखाई देती है। हालांकि
जिस रफ्तार से बेतियाका विकास हो रहा है उसी रफ्तार से मोतिहारी का विकास होता हुआ
नहीं दिखाई देता।
मशहूर फिल्मकार प्रकाश झा और
फिल्म अभिनेता मनोज वाजपेयी बेतिया के रहने वाले हैं। हमारे पत्रकार मित्र समीर
वाजपेयी, आसितनाथ तिवारी का रिश्ता भी बेतिया से है। अगर आप चंपारण के किसी हिस्से
से गुजर रहे हैं तो यहां दही खाना न भूलें। ऐसा स्वाद कहीं नहीं मिलेगा। हमारे एक
और पत्रकार साथी ब्रजेश झा भोजपुरी भाषी चंपारण क्षेत्र के अहमित को अपने शब्दों
में बयां करते हैं। पेश है उनके सौजन्य से मिली चंपारण महत्व को बयां करती एक
भोजपुरी कविता... कवि का नाम नहीं पता...
चंपारण_के_लोग_हँसेला
उत्तर ओर सोमेसर खड़ा,
दखिन गंडक जल के धारा |
पूरब बागमती के जानी,
पश्चिम में त्रिवेणी जी बानी |
माघ मास लागेला मेला,
चंपारण के लोग हँसेला | |
त्रिवेणी के नामी जंगल,
जहँवा बाघ करेला दंगल |
बड़का दिन के छुट्टी होला,
बड़-बड़ हाकिम लोग जुटेला |
केतना गोली रोज छुटेला,
चंपारण के लोग हँसेला | |
नदी किनारे सुन्दर बगहां,
मालन के ना लागे पगहा |
परल इन्हा संउसे बा रेत,
चरके माल भरेलें पेट |
रेल के सिलपट इन्हा बनेला,
चंपारण के लोग हँसेला | |
इन्हा मसान नदी बउरहिया,
ऊपर डुगरे रेल के पहिया |
भादो में जब इ फुफुआले,
एकर बरनन करल ना जाले |
बड़का-बड़का पेड़ दहेला,
चंपारण के लोग हँसेला | |
इहे रहे विराट के नगरी,
जहँवा पांडव कईलें नौकरी |
अर्जुन इहंवे कईलें लीला,
इहंवे बा विराट के टीला |
बरनन वेद-पुराण करेला,
चंपारण के लोग हँसेला | |
परल इंहवा पानी के टान,
अर्जुन मरलें सींक के बाण |
सींक बाण धरती में गईल,
सिकरहना नदी बह गईल |
जेकर जल हर घड़ी बहेला,
चंपारण के लोग हँसेला | |
रामनगर राजा नेपाली,
माँगन कबो ना लौटे खाली |
इहाँ हिमालय के छाया बा,
इन्हा अजबे कुछ माया बा |
एही नदी में स्वर्ण दहेला,
चंपारण के लोग हँसेला | |
रामनगर के धनहर खेती,
एकहन खेत रोहू के पेटी |
चार महीना लोग कमाला,
आठ महीना बइठल खाला |
दाना बिना केहू ना मरेला,
चंपारण के लोग हंसेला | |
इहां जाईं चानकी पर चढ़,
देखीं लौरिया में नंदनगढ़ |
केहू कहे भीम के लाठी,
गाड़ल बा पत्थर के जाथी |
लोग अशोक के लाट कहेला,
चंपारण के लोग हंसेला | |
नरकटियागंज देखीं गाला,
मंगर शनिचर हाट के हाला |
लेलीं बासमती के चाउर,
अन्न इहाँ ना मिली बाउर |
भात बने बटुला गमकेला,
चंपारण के लोग हँसेला | |
आगे बढीं चलीं अब बेतिया,
बीच राह में बा चनपटिया |
इहाँ मिले मरचा के चिउरा,
किन-किन लोग भरेला दउरा |
गाड़ी-गाड़ी धान बिकेला,
चंपारण के लोग हँसेला | |
बेतिया राजा के राजधानी,
रहलें भूप करन अस दानी |
पच्छिम उदयपुर बेंतवानी,
बढ़िया सरेयाँ मन के पानी |
दूर-दूर के लोग पियेला,
चंपारण के लोग हँसेला | |
बेतिया के मीना मशहूर,
गिरजाघर भूकंप में चूर |
बाड़े अबतक बाग़ हजारी,
मेला लागे दशहरा के भारी |
हाथी घोडा बैल बिकेला,
चंपारण के लोग हँसेला | |
आलू डगरा बस बेतिया के,
भेली सराहीं जोगिया के |
गुड़ चीनी के मात करेला,
चंपारण के लोग हँसेला | |
बेतिया के दक्षिण कुछ दूर,
बथना गाँव बसल मशहूर |
इहाँ बा लाला लोग के बस्ती,
धंधा नौकरी और गिरहस्ती |
एमे केतना लोग बसेला,
चंपारण के लोग हँसेला | |
चंपारण के गढ़ मोतिहारी,
भईल नाम दुनिया में भारी |
पहिले इहे जिला जागल,
गोरन का मुँह करिखा लागल |
नीलहा अबतक नाम जपेला,
चंपारण के लोग हँसेला | |
गाँधीजी जब भारत में अइलें,
पहिले इंहवा सत्याग्रह कईलें |
लीलाहा देखी भाग पराईल,
तब से ना चंपारण आइल |
मोतिहारी के नाम जपेला,
चंपारण के लोग हँसेला | |
इन्हवे बसल सुगौली भाई,
गोरे-गोरखे भइल लड़ाई |
हारे पर जब भइलें गोरा,
धर दिहलें गोली के बोरा |
भईल सुलह इतिहास कहेला,
चंपारण के लोग हँसेला | |
कँवरथिया के देखीं राबा,
अरेराज बउराहवा बाबा |
नामी अरेराज के मेला,
आके दरशन लोग करेला |
फगुनी तेरस नीर चढ़ेला,
चंपारण के लोग हँसेला | |
छपरा जिला गोरखपुर बस्ती,
जेकर इहाँ होत परवस्ती |
केहू नोकरी केहू नाच करेला,
माँगन लोग दिन-रात रहेला |
केतना लोटा झाल बजेला,
चंपारण के लोग हँसेला | |
खाए में जब खटपट भइलें,
भाग के तब चंपारण अइलें |
माँगी-चाँगी के धन-धान कमइलें,
माँगन से बाबू बन गईलें |
अइसन केतना लोग बसेला,
चंपारण के लोग हँसेला | |
सब दिन खईलें सतुआ लिट्टी,
इहाँ परल देहिया पर पेटी |
बाप के दुःख भूल गईलें बेटा,
भोर परल माटी के मेटा |
अब त लाख पर दिया जरेला,
चंपारण के लोग हँसेला | |
का करिहें कविलोग बड़ाई,
जग चंपारण के गुण गाई |
आपन कमाई अपने खाला,
केहू से ना मांगे जाला |
ए देख दुश्मन ठठुरेला,
चंपारण के लोग हँसेला | |
रहलें उ कविचूर के साथी,
इहंवे के भईया देहाती |
कविता बा उ देहिया नइखे,
गगरी भरल खींचाते नइखे|
रटना अबहीं लोग करेला,
चंपारण के लोग हँसेला | |