दस सितंबर की रात जब माधवी और अनादि चले गए मेरी एक मजदूर से बात हुई,
बोला चार दिन से हेलीपैड पर लिफ्टिंग का इंतजार कर रहा हूं। अभी तक मेरा नंबर नहीं
आया। रोज लाइन लगाता हूं पर अगले दिन उस लाइन से एक भी आदमी लिफ्ट नहीं हो पाता
है। पता नहीं मेरा नंबर कब आएगा। उस मजदूर के मन में निराशा भर रही थी। विदेशी
नागरिक, महिलाएं और बच्चे तो प्राथमिकता पर थे ही। पर बाकी बचे लोगों के लिए कोई
नियम नहीं बनाया गया था। इन बाकी बच्चे लोगों में बुजुर्ग, गरीब मजदूर और श्रीनगर
घूमने आए खाते पीते घरों के लोग थे।
इनमें कोई बैंक या दूसरे विभाग में काम करने
वाला बड़ा अधिकारी था तो कोई बड़ा व्यापारी। सभी अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे।
हमने बीएसएफ के उस अधिकारी को बात करके समझाने की कोशिश की, आप महिलाओं और विदेशी
नागरिकों के अलावा बाकी बचे हुए लोगों के लिए टोकन जारी कर दें। उस टोकन के हिसाब
से जिसका जब नंबर आ जाएगा उनकी लिफ्टिंग हो जाएगी। इससे लोगों को सारी रात भंयकर
सर्दी में लाइन लगाकर बैठने की जरूरत तो नहीं रह जाएगी। आप वैष्णो देवी या तिरूपति
बालाजी मंदिरों की तरह की व्यवस्था क्यों नहीं लागू कर देते। पर मेरी बातों का उन
पर कोई असर नहीं हुआ।
फिर सर्द रात में लाइन लगी - 10 सितंबर की रात को भी एक दिन पहले की
तरह लोगों ने रात 12 बजे से ही लंबी लाइन लगा दी। मुझे लग रहा था कि ये कल की तरह
ही होने वाला है।इनमें से किसी का नंबर आने की उम्मीद नहीं है क्योंकि बड़ी संख्या
में महिलाएं और बच्चे फिर आ गए हैं। पर रामपुर के मसूद भाई को उम्मीद थी, वे बड़ी
मश्कक्त करके लाइन में सबसे आगे लगे हुए थे। 11 सितंबर की सुबह हुई तो कुछ बीएसएफ
के जवानों ने और कुछ पीडित स्वंयसेवकों ने मिलकर लाइन में लगे लोगों को टोकन जारी
कर दिया। इस टोकन में मेरा नंबर 298 नंबर पर था। हमलोग सुबह से शाम तक लाइन में
लगे रहे। सुबह साढ़े सात बजे लिफ्टिंग शुरू हुई। सुबह लिफ्टिंग की गति तेज जरूर
रही, पर महिलाएं बच्चे और विदेशी नागरिकों का ही नंबर आ रहा था।
लाइन में लगे लोग बार बार आग्रह कर रहे थे इस लाइन से भी लिफ्टिंग करो पर
ऐसा अधिकारी करने को राजी नहीं थे। बाद में उन्होंने वादा किया दोपहर 12 बजे से इस
लाइन के लोग लिफ्ट किए जाएंगे। थोड़ी देर बाद ये समय दो बजे हो गया। पर दो बजे भी
इस लाइन से कोई लिफ्टिंग नहीं हुई। वायुसेना के हेलीकाफ्टर तो अपनी गति से उड़ान
भर रहे थे पर लिफ्टिंग विदेशी नागरिकों महिलाओं बच्चों और सिफारिशी लोगों की रही
थी। चार, पांच दिन से इंतजार कर रहे लोगों का नंबर नहीं आ रहा था।
एक बार फिर हंगामा - लोगों को सब्र का बांध टूट गया तो लोगों ने एक बार
हंगामा और नारेबाजी शुरू कर दी। पुलिस ने एक बार फिर लाठियां भांजी। लोगों पर
लाठियां बरसाने में जम्मू एंड कश्मीर पुलिस के कुछ बड़े अफसर भी आगे थे। सैलाब के
पीड़ित वक्त के मारे हुए लोग मजबूर थे। शाम होने को आई और लिफ्टिंग बंद होने का
समय हो गया था। बड़ी मुश्किल से लाइन में लगे लोगों में से सिर्फ आगे से 25 लोगों
की लिफ्टिंग हो पाई। इसमें सरस मेले में आए रामपुर के मसूद भाई का नंबर आ गया। वे
खुश किस्मत थे। पर पंजाब के व्यास से आए बलराज सिंह और मेरे जैसे हजारों लोगों का
नंबर नहीं आया। रात हो गई और हम और निराश हो गए। आज ये तीसरी रात थी जो मैं भूखे
पेट गुजारने जा रहा था।